.

बाबासाहब का अंतिम सन्देश और शुरुआती संघर्ष

 

बाबासाहब का अंतिम सन्देश और शुरुआती संघर्ष

-के सी पिप्पल

 

  

(बौद्ध दीक्षा दिवस 14 अक्टूबर 2021 पर विशेष)

'मैं हिंदू धर्म में पैदा ज़रूर हुआ, लेकिन हिंदू रहते हुए मरूंगा नहीं’ इस वक्तव्य के साथ 1935 में ही बाबासाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ने की घोषणा कर दी थी। लेकिन, औपचारिक तौर पर कोई अन्य धर्म उस वक्त नहीं अपनाया था। वे समझते थे कि यह सिर्फ उनके धर्मांतरण की नहीं बल्कि एक पूरे समाज की बात थी इसलिए उन्होंने सभी धर्मों के इतिहास को समझने और कई लेख लिखकर शोषित समाज को जाग्रत व आंदोलित करने का सुनियोजित प्रयास था। भारत में नवबौद्ध आंदोलन वैदिक धर्म की वर्णाश्रम व्यवस्था में कुल्हाड़े की चोट के सामान है। आज जो सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति की दिशा में प्रगति और संविधान द्वारा प्रदत्त मानवाधिकार, यह सभी 20वीं सदी में बाबासाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा शुरू किये गए संघर्ष का ही परिणाम हैं। वे मानते थे कि वहिष्कृत जातियां और अन्य गैर-ब्राह्मण जातियों का हिंदू धर्म के भीतर रहकर सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक उत्थान संभव नहीं हो सकता। इस लिए 1935 से सोचते - सोचते उन्होंने धर्म के रूप में बुद्ध के मार्ग को 1956 में आत्मसात किया, जो स्वतंत्रता, समानता बंधुत्व की शिक्षा देता है।

बौद्ध विचारधारा से प्रेरित होकर उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 . को कुशीनगर के भिक्खु से धम्म दीक्षा ग्रहण करने के बाद अपने करीब 10,00,000 अनुयायियों को भी नागपुर और चंदरपुर में बौद्ध धर्म स्वीकार करने हेतु प्रेरित किया उन्होंने अपने समर्थकों को 22 बौद्ध प्रतिज्ञाओं का अनुसरण करने की सलाह दी। जिनका सार ये था कि बौद्ध धर्म अपनाने के बाद "मैं किसी हिंदू देवी देवता को नहीं मानुंगा/ मानुंगी और उनकी पूजा में विश्वास नहीं करूंंगाकरूंंगी। हिंदू धर्म के कर्मकांड नहीं मानुंगा/ मानुंगी और ब्राह्मणों से किसी किस्म की कोई पूजा अर्चना नहीं करवाउंगा/ करवाउंगी। इसके अलावा समानता और नैतिकता को अपनाने संबंधी प्रतिज्ञा भी की थी। इस आंदोलन को श्रीलंकाइ बौद्ध भिक्षुओं का भरपूर समर्थन मिला। आज के समय में, जब देश में संवैधानिक मूल्यों पर आंच रही हो उस समय इस आंदोलन को अपने शिखऱ की ओर जाना चाहिए था।

धर्म परिवर्तन करने और 6 दिसंबर 1956 के बाद यह आंदोलन धीमा पड़ता चला गया। 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में करीब 84 लाख बौद्ध हैं, जिनमें से करीब 60 लाख महाराष्ट्र में हैं, और ये महाराष्ट्र की आबादी के 6 फीसदी हैं। जबकि देश की आबादी में बौद्धों की आबादी 1 फीसदी से भी कम है। इस समय करीब 25 करोड़ अधिक दलित आबादी है जिनको बाबा साहब ने बौद्ध बनने की सलाह दी थी, यदि वे 2021 में हो रहे सेंसस में अपने धर्म के कालम में बौद्ध लिख दें तो बौद्धों की संख्या कुल आबादी का पांचवां हिस्सा बन जाएगी।

धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस

धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस भारतीय बौद्धों का एक प्रमुख उत्सव है। दुनिया भर से लाखों बौद्ध अनुयाई एकट्ठा होकर हर साल अशोक विजयादशमी एवं 14 अक्टूबर के दिन इसे मुख्य रुप से दीक्षाभूमि, महाराष्ट्र में मनाते हैं। इस उत्सव को स्थानीय स्तर पर भी मनाया जाता है। बाबासाहब ने जहां बौद्ध धम्म की दीक्षा ली, वह भूमि आज दीक्षाभूमि के नाम से जानी जाती है। बाबासाहब ने जब बौद्ध धर्म अपनाया था तब बुद्धाब्ध (बौद्ध वर्ष) 2500 था। विश्व के कई देशों एवं भारत के हर राज्यों से बौद्ध अनुयाई हर साल दीक्षाभूमि, नागपुर आकर धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस 14 अक्टूबर को एक उत्सव के रूप में मनाते हैं। यह त्यौहार व्यापक रूप से बाबासाहब के बौद्ध अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है।

डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने यह दिन बौद्ध धम्म दीक्षा के चूना क्योंकि इसी दिन ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक ने भी बौद्ध धर्म ग्रहण किया था। तब से यह दिवस बौद्ध इतिहास में अशोक विजयादशमी के रूप में जाना जाता था, डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने बीसवीं सदीं में बौद्ध धर्म अपनाकर भारत से लुप्त हुए धर्म का भारत में पुनरुत्थान किया।

इस त्यौहार में विश्व के प्रसिद्ध बौद्ध एवं भारत के प्रमुख राजनेता भी शामिल रहते है। धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के अवसर पर दीक्षाभूमि पर प्रतिवर्ष हजारों लोग धर्म परिवर्तन कर बौद्ध बनते हैं। सन 2018 में 62वें धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के अवसर पर 62,000 तथा सन 2019 में 63वें धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के अवसर पर 67,543 अनुयायिओं ने दीक्षाभूमि पर बौद्ध धर्म ग्रहण किया था। 14 अक्टूबर 2021 को 65वां दीक्षा दिवस है।

धर्म परिवर्तन की घोषणा

बाबासाहब डॉ अंबेडकर 10-12 साल हिन्दू धर्म के अन्तर्गत रहते हुए हिन्दू धर्म तथा हिन्दु समाज को सुधारने, समता तथा सम्मान प्राप्त करने के लिए तमाम प्रयत्न करते रहे, परन्तु सवर्ण हिन्दुओं का ह्रदय परिवर्तन नहीं हुआ। उसेके बाद उन्होंने कहा था कि, “हमने हिन्दू समाज में समानता का स्तर प्राप्त करने के लिए हर तरह के प्रयत्न और सत्याग्रह किए, परन्तु सब निरर्थक सिद्ध हुए। हिन्दू समाज में समानता के लिए कोई स्थान नहीं है।” हिन्दू समाज का यह कहना था कि “मनुष्य धर्म के लिए हैं” जबकि डॉ अंबेडकर का मानना था कि "धर्म मनुष्य के लिए हैं।" डॉ.अंबेडकर ने कहा कि ऐसे धर्म का कोई मतलब नहीं जिसमें मनुष्यता का कुछ भी मूल्य नहीं हो। जो अपने ही धर्म के अनुयायिओं (अछूतों) को धर्म की शिक्षा प्राप्त नहीं करने देता हो, नौकरी करने में बाधा पहुँचाता हो, बात-बात पर अपमानित करता हो और यहाँ तक कि पानी तक नहीं मिलने देता हो ऐसे धर्म में रहने का कोई मतलब नहीं। उन्होंने हिन्दू धर्म त्यागने की घोषणा किसी भी प्रकार की दुश्मनी व हिन्दू धर्म के विनाश के लिए नहीं की थी बल्कि उन्होंने इसका फैसला कुछ मौलिक सिद्धांतों को लेकर किया जिनका हिन्दू धर्म में बिल्कुल तालमेल नहीं था।

13 अक्टूबर 1935 को नासिक के निकट येवला में एक सम्मेलन में बोलते हुए डा.अंबेडकर ने धर्म परिवर्तन करने की घोषणा की और उन्होंने अपने अनुयायियों से भी बौद्ध बनने का आह्वान किया। उन्होंने अपनी इस बात को भारत भर में कई सार्वजनिक सभाओं में भी दोहराया। इस घोषणा के बाद हैदराबाद के इस्लाम धर्म के निज़ाम से लेकर कई ईसाई मिशनरियों ने उन्हें करोड़ों रुपये का प्रलोभन भी दिया पर उन्होनें सभी को ठुकरा दिया। निःसन्देह वो भी चाहते थे कि दलित समाज की आर्थिक स्थिति में सुधार हो, पर पराए धन पर आश्रित होकर नहीं बल्कि उनके परिश्रम और संगठन होने से स्थिति में सुधार आए। इसके अलावा वे ऐसे धर्म को चुनना चाहते थे जिसका केन्द्र मनुष्य और नैतिकता हो, उसमें स्वतंत्रता, समता तथा बंधुत्व हो। वो किसी भी हाल में ऐसे धर्म को नहीं अपनाना चाहते थे जो वर्णभेद तथा छुआछूत की बीमारी से जकड़ा हो और ना ही वो ऐसा धर्म चुनना चाहते थे जिसमें अंधविश्वास तथा पाखंडवाद हो। 21 मार्च, 1936 के अपने पत्र में गांधीजी ने लिखा की, 'जबसे डॉ अंबेडकर ने धर्म-परिवर्तन की धमकी दी है, उन्हें अपने निश्चय से डिगाने की हरचन्द कोशिशें की जा रही हैं.' यहीं गांधीजी आगे एक जगह लिखते हैं, 'हां ऐसे समय में (सवर्ण) समाज सुधारकों को अपना हृदय टटोलना जरूरी है। उसे सोचना चाहिए कि कहीं मेरे या मेरे पड़ोसियों के व्यवहार से दुखी होकर तो ऐसा नहीं किया जा रहा है। ...यह तो एक मानी हुई बात है कि अपने को सनातनी कहने वाले हिन्दुओं की एक बड़ी संख्या का व्यवहार ऐसा है जिससे देशभर के ....  को अत्यधिक असुविधा और खीज होती है। आश्चर्य यही है कि इतने ही हिन्दुओं ने हिन्दू धर्म क्यों छोड़ा, और दूसरों ने भी क्यों नहीं छोड़ दिया? यह तो उनकी प्रशंसनीय वफादारी या हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता ही है जो उसी धर्म के नाम पर इतनी निर्दयता होते हुए भी लाखों दलित उसमें बने हुए हैं।'

अंबेडकर ने धर्म परिवर्तन की घोषणा करने के बाद 21 वर्ष तक के समय के बीच उन्होंने ने विश्व के सभी प्रमुख धर्मों का गहन अध्ययन किया। उनके द्वारा इतना लंबा समय लेने का मुख्य कारण यह भी था कि वो चाहते थे कि जिस समय वो धर्म परिवर्तन करें उनके साथ ज्यादा से ज्यादा उनके अनुयायी धर्मान्तरण करें। अंबेडकर बौद्ध धर्म को पसन्द करते थे क्योंकि उसमें तीन सिद्धांतों का समन्वित रूप मिलता है जो किसी अन्य धर्म में नहीं मिलता। बौद्ध धर्म, प्रज्ञा (अंधविश्वास तथा चमत्कार इत्यादि के स्थान पर बुद्धि का प्रयोग), करुणा (प्रेम) और समता (समानता) की शिक्षा देता है। उनका कहना था कि मनुष्य इन्हीं बातों को शुभ मानकर आनंदित जीवन की कामना करता है। भगवान, भाग्य और आत्मा समाज को अंधकार या दुख से मुक्ति नहीं दिला सकते। अंबेडकर के अनुसार सच्चा धर्म (सद्धर्म) वह है जिसके केन्द्र में मानवता तथा सदाचरण हो, विज्ञान अथवा तर्क पर आधारित हो, न कि धर्म का केन्द्र ईश्वर, आत्मा की मुक्ति और मोक्ष हो। साथ ही उनका कहना था कि सच्चे धर्म का कार्य संसार का पुनर्निर्माण करना है, ना कि उसकी उत्पत्ति और अंत की व्याख्या करना। वे जनतांत्रिक समाज व्यवस्था के पक्षधर थे, क्योंकि उनका मानना था ऐसी व्यवस्था में धर्म मानव जीवन का मार्गदर्शक बन सकता है मुक्तिदाता नहीं। ये सब बातें उन्हें एकमात्र बौद्ध धर्म में ही मिलीं, उन्होंने इसे वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित धर्म की संज्ञा दी।  

डा अंबेडकर और उनका धम्म ग्रन्थ 

इस किताब को लिखने का एक अलग उद्देश्य है। 1951 में कलकत्ता की महाबोधि सोसायटी के जर्नल के संपादक ने मुझसे वैशाख पूर्णिमा (बुद्ध जयंती) के अवसर पर एक लेख लिखने के लिए कहा था। उस लेख में मैंने तर्क दिया कि बुद्ध का धर्म ही धर्म है जो एक समाज विज्ञान के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, और जिसके बिना जाति का नाश होगा। मैंने यह भी बताया है कि आधुनिक दुनिया के लिए बौद्ध धर्म ही सही धर्म है जो खुद को बचाने के लिए पर्याप्त गुणों से पूर्ण है। यही कारण है कि बौद्ध धर्म का साहित्य इतना विशाल है कि कोई भी इसके बारे में पूरा पढ़ नहीं सकता है, इसी वजह से इसके अनुयायी बनने की गति धीमी है। ईसाइयों की बाइबिल की तरह इसकी कोई एक पुस्तक नहीं है, यह इसकी सबसे बड़ी बाधा है। इस लेख के प्रकाशन पर, मुझे कई कॉल लिखित और मौखिक रूप में किये गए। इस पर एक किताब लिखने के लिए प्राप्त हुआ।

भारत में बौद्ध धर्म का जन्म ईसा पूर्व 6वीं शताब्दी में हुआ था और तब से यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक अभिन्न अंग बन गया है। वर्षों से, सम्पूर्ण भारत में हिन्दु और बौद्ध संस्कृतियों का एक अद्भुत मिलन होता आया है और भारत के आर्थिक उदय और सांस्कृतिक प्रभुत्व में बौद्धों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत में बौद्ध धर्म ईसा पूर्व 6वी शताब्दी से 8वी शताब्दी तक भारत में बौद्ध धर्म रहा। लेकिन देशी-विदेशी धर्मों के खून खराबे, हिंसक शक्ती से जुंजते हुए बौद्ध धर्म भारत में 12वी शताब्दी तक रहा और हिमालयीन प्रदशों के उपरांत अन्य राज्यों में नहीं के बराबर हो गया।

सन 1956 में आधुनिक भारत के निर्माता और बौद्ध विद्वान डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा अपने लाखों अनुयायीओं के साथ बौद्ध धर्म अपनाकर बौद्ध धर्म को भारत पुनर्जीवीत किया। भीमराव अम्बेडकर के प्रभाव से एक सर्वेक्षण के अनुसार सन 1959 तक देश के करीब 2 करोड़ लोगों ने बौद्ध धर्म को ग्रहण किया था।

2011 की जनगणना के अनुसार 100,000 से अधिक बौद्ध जनसंख्या वाले राज्य

राज्य

अनुसूचित जाति की जनसंख्या

अनु.जाति  जनसंख्या (%)

बौद्ध

जनसंख्या

बौद्ध जनसंख्या

(%)

महाराष्ट्र

13275898

11.8

6531200

5.81%

प. बंगाल

21463270

23.5

282898

0.31%

मध्य प्रदेश

11342320

15.6

216052

1.71%

उत्तर प्रदेश

41357608

20.7

206285

0.11%

सिक्किम

28275

4.6

167216

27.39%

अरूणाचल 

0

0.0

162815

11.77%

त्रिपुरा

654918

17.8

125385

3.41%

ज. कश्मीर

924991

7.4

112584

0.90%

डा अंबेडकर और उनका शुरुआती संघर्ष

21 मार्च, 1920 को अछूतों की एक कफ्रेंस को संबोधित करते हुए कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति शाहूजी ने भविष्यवाणी करते कहा था- "आप लोगों को डॉ अंबेडकर के रूप में मुक्तिदाता मिला है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि वह आप लोगों की हजारों सालों की गुलामी की जंजीरों को तोड़ देगा। मुझे आभास हो रहा है कि डॉ अंबेडकर भावी भारत में सूर्य बनकर चमकेगा।"

आज महाराजा कोल्हापुर की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई। बाबासाहेब ने अछूतों की चिर-दासता स्वरूप पहनाई गई हथकड़ियों और बेड़ियों को अपने बुद्धिबल और सतत संघर्ष की शक्ति से तोड़ फेंका।

इसमें कोई शक नहीं कि हजारों साल से अछूतों की हालत पशुओं से भी गई बीती थी। उन्हें भारत में कोई भी अधिकार प्राप्त नहीं थे। हिन्दू धर्म का अंग होने के बाबजूद उसी धर्म के ठेकेदारों ने उन्हें जूठन खाने, चिथड़े पहनने, गांव से बाहर गंदी और असुरक्षित फूंस की झोपड़ियों में रहने, धन-दौलत से वंचित, शिक्षा से वर्जित, सरकारी नौकरियों से कोसों दूर और किसी भी प्रकार के सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों से वंचित रहने के लिए मजबूर कर रखा था।

इन 1108 जातियों को नई पहचान देने के लिए बाबासाहब ने 1927 में "वहिष्कृत हितकारिणी सभा" के नाम से संगठित किया, 1936 में  इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी बनाकर इसके साथ उनको संगठित किया, 1942 में अनुसूचित जातियों का महासंघ "All India Scheduled Caste Federation" के नाम से संगठित किया और 14 अक्टूबर 1956 को अपने साथ उन्हें बौद्ध धम्म में आने का आव्हान किया। सामाजिक संघर्ष, राजनीतिक संघर्ष, और अंत में बुद्ध की शरण में आने का  सन्देश दिया। उक्त सभी आंदोलन बहिष्कृत जातियों के सम्मान और स्वाभिमान को बहाल करने केे लिए किए गए थे। अर्थात समाज का नेतृत्व स्वयं, राजनीतिक नेतृत्व स्वयं और धार्मिक नेतृत्व भी स्वयं करने के लिए अपना संगठन बनाने के लिए शिक्षित और प्रशिक्षित करने के लिए निरंतर संगठित बनाये रखा। बाबा साहब की यही 'गत्यात्मकता' (dynamism) उनके आंदोलन की जान थी जो उन्होंने बुद्ध के 'अनित्य' (momentary) दर्शन से सीखा था।

राष्ट्रीय उन्नति हेतु बौद्ध धम्म के प्रचार की जरूरत

मूकनायक पत्र के प्रथम 13 संपादकीय में उनके द्वारा लिखे विचारों को पढकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे 1920 में क्या सोच रहे थे-

उन्होंने भारत की परतंत्रता के मूल कारणों की समीक्षा करते हुए सम्पादकीय में लिखा कि-  विश्व के भूगोल को  शासकीय दृष्टि से देखने पर हमें जानकारी मिलती है कि हर देश में एक 'स्वयं द्वारा शासित वर्ग' तथा दूसरा 'दूसरों द्वारा शासित वर्ग' रहे हैं। स्वशासित देश का कार्यभार उस देश के ही मूल निवासियों के पास होता है। परंतु परशासित देश के शासन की बागडोर परदेशी लोगों के हाथ में रहती है। हिन्दुस्तान की गिनती (संपादकीय लेखन वर्ष 1920 तक) दूसरे वर्ग के देशों में होती रही है। इस देश में रहने वाले हिन्दू, मुसलमान, पारसी वगैरह हैं। फिर उन सभी को 'हिंदू' के नाम से सम्बोधित कर सकते हैं परंतु इन हिन्दी लोगों पर सत्ता करने वाले लोग हिन्द के मूल निवासी नहीं हैं। यानी हिन्दी लोग स्वयं शासित नहीं है। बहुत समय से हिन्दुस्तान पराए अमल के नीचे रहा है। इस उर्वरा भूमि पर शासन करने के लिए पुराने पाश्चात्य राष्ट्रों ने अनेक बार प्रयत्न किये। “रोमन" और "ग्रीक" लोगों ने भी इस दिशा में प्रयत्न किये परंतु वे विफल रहे, जबकि मुसलमानों द्वारा किये गये प्रयत्नों का उन्हें जबरदस्त फल मिला।

मुसलमान लोगों द्वारा हिन्दुस्तान पर आक्रमण करने की शुरुआत स. 986 ई. में हुई। फिर भी उनको इस देश में स्थायित्व प्राप्त होने में बहुत अवधि लगी। पृथ्वीराज चौहान की जब 1193 की लड़ाई में मृत्यु हुई तब से हिन्दू राजशाही (दिल्ली की गद्दी) परदेसियों के हाथों में चली गई। जिन पठान लोगों ने यह गद्दी हड़पी उनको 1526 में पानीपत में मुगल अधिपति बाबर ने पराजित करके दिल्ली के तख्त पर स्वयं को बादशाह घोषित कर दिया। परंतु उनके द्वारा स्थापित किये हुए राज्य पर 200 (दो सौ) वर्ष के अंदर ही उनकी सार्वभौमसत्ता का पतन होना शुरू हो गया। कुछ समय तक सत्ता दक्षिण के मराठा लोगों के पास भी रही। अन्ततोगत्वा हिन्दुस्तान की बागडोर लंबे समय तक यानि 1947 तक अंग्रेजों के हाथों में रही जो इस देश की परतंत्रता की पूर्वपीठिका है।

सत्ता के सामान्यत: दो उद्देश्य हैं- एक प्रशासन और दूसरा संस्कृति युक्त शासन या शिष्टता या शांति बनाए रखना। शांति भंग दो प्रकार से हो सकती है बाहरी आक्रमण या गृहयुध्द द्वारा। जब किसी देश में एक वर्ग विशेष का शासन हो जाता है और वह अन्य लोगों की स्वतंत्रता को बाधित या कुचलता है तो आंतरिक विद्रोह की संभावना बन सकती है, इसी तरह सत्ताधारी विशेष वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के आर्थिक अधिकारों का हनन किया जाता है तब भी आंतरिक कलह की स्थिति पैदा होती है। 

इस संपादकीय में बाबा साहब का अभिप्राय था कि बिना सुराज (सभी को न्याय) या बिना संस्कृति के शासन के 'स्वराज' (स्वयं की सत्ता) की बात करना किसी नवजात बच्चे पर अपना दावा ठोंकने जैसा है। केसरी पत्र में बालगंगाधर तिलक चिल्ला रहे थे कि "स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है" पर उन्होंने उन पर तंज कसते हुए लिखा कि सामाजिक अन्याय करने वाले पेशवा ब्राह्मण कभी स्वराज के नेता नहीं हो सकते, तेज चिल्लाने से उनका स्वराज पर दावा नहीं बन सकता। हां लोकमाता एनिबिसेंट और लोकमान्य शास्त्री इसके सच्चे नायक हो सकते हैं।

1910 की जनगणना के समय मुसलमान बंधुओं की सूचना के आधार पर स्वराज की बात करने वालों की ओर से यह बात सामने आई थी कि बहिष्कृत जातियों को उस समय हिंदू लोगों की तरह सर्वसाधारण अधिकार प्राप्त नहीं थे, इसलिए उन्हें हिंदुओं की सूची में नहीं रखना चाहिए। ऐसा विचार बड़े मुक्त कंठ से चल रहा था।

दूसरी ओर बहिष्कृत जातियों को हिंदू कहने वालों ने बहस शुरू कर दी थी, इनमें सुप्रसिद्ध क्रिकेटर बालू पलवणकर मुख्य प्रवक्ता थे। उनके साथ कुछ वर्ष पूर्व मुंबई के आर्यन ब्रदरहुड के वार्षिक उत्सव में सहभोज करने की वजह से धर्म डूब गया यह कहने वालों का  स्वर आज भी थमा नहीं है, यह बात उन्हें याद रखना चाहिए। एक धर्म विशेष के नीचे रहने वाले लोग ही इनके वैदिक धर्म को शीर्षस्थ मानने वाले अनादि काल से हैं। 

इतना तिरस्कार मुसलमानों के प्रति इनको था वह सब भूलकर दिल जोड़ कर मुसलमानों की पंक्ति में बैठकर धर्म नहीं डूबता ऐसा नहीं है परंतु डूबने से भी काम नहीं चलता पंक्ति में बैठो धर्म निभाओ परंतु एक हो जाओ और स्वराज मांगने के लिए ब्राह्मण लोग आजकल मुसलमानों से प्रार्थना कर रहे हैं क्योंकि अगर मुसलमानों ने हिंदुओं के होने वाले स्वराज के विषय में ना कहा तो सचमुच स्वराज चला जाएगा ऐसा उन्हें डर लग रहा है।

भिक्षुणी संघ की आवश्यकता

बौद्ध धर्म समानता के ऐसे मूल्यों को अपने अंदर समाहित किये हुए है। यह अपने अनुयायियों के बीच समानता के व्यवहार को महत्व देता है। यही मूल्य भारतीय संविधान में  समता स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय के रूप परिलक्षित होते हैं। बाबासाहब ने बौद्ध धर्म में दीक्षा 14 अक्टूबर 1956 को ग्रहण की जबकि संविधान की रचना 1946 में करते समय उक्त मूल्यों का समावेश पहले ही कर दिया और वह भारत के शासन के लिए दिशा निर्देश बन गए। मैं इस बात से इनकार नहीं करूंगा कि बौद्ध धर्म केवल एक धर्म नहीं बल्कि मानवता का पर्याय है। भारतीय इतिहास में बुद्ध ने जब ईसा से 650 वर्ष पूर्व नैतिकता एक अलग मार्ग प्रस्तुत किया जिसे बाद में बौद्ध धर्म कहा गया वह असमानता के स्थायी वैदिक नियमों के विपरीत था। इसी तरह उन्होंने अपने विचारों में लैंगिक समानता के विचार को भी  प्रस्तुत किया और उसे संघ का अंग बनाया। उन्होंने प्रकार बौद्ध धर्म के चार मुख्य स्तंभ बनाये; 1. भिक्षु संघ, 2. भिक्षुणी संघ, 3. उपासक संघ और 5. उपासिका संघ। यह चारों बौद्ध धर्म के इस कारवां के चार पहियों की तरह हैं, एक भी पहिया गायब होने पर भी वाहन आगे नहीं बढ़ेगा।

कई बौद्ध देशों में भी, महिलाओं को भिक्खुनी बनने की अनुमति नहीं है, वे सामनरी के रूप में छात्र बन सकती हैं, कुछ देशों में माई जी के रूप में महिलाएं हैं लेकिन उनको भिक्खुनी का सम्मान और अधिकार प्राप्त नहीं हैं। ऐसी ही परंपरा अब भारत में भी देखी जाती है। भारत जहाँ बुद्ध ने अपना जीवन व्यतीत किया, जहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म की शुरुआत और विकास किया, जहाँ उन्होंने समानता की इन अवधारणाओं को गढ़ा, जहाँ भारत का संविधान समानता के नियम का कड़ाई से पालन करता है, जहाँ डॉ.अम्बेडकर जिन्होंने एक बार में लाखों लोगों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया, उन्होंने बौद्ध धर्म दिया और विरासत के रूप में समानता के  शासन हेतु संविधान दिया हो उस देश में  बाबासाहेब और बुद्ध के अनुयायी भिक्षुणी संघ को गौण क्यों मानते हैं, यह कहीं न कहीं महिलाओं की आवश्यकता को न समझ कर बौद्ध धर्म के विस्तार को रोकने जैसा कदम है।

गाँवों और शहरों में समाजों के लोग भिक्खुनियों के वस्त्रों में महिलाओं को देखकर बहुत खुश हो जाते हैं और बुद्ध के मार्ग का प्रचार करते देख वे अपने निजी जीवन और धम्म के बारे में बहुत सारे सवाल भिक्खुनियों से पूछते हैं।

आज हम भिक्खुनी भंते सुनीति और भिक्खनी मैत्रिया को देखते हैं जो उच्च शिक्षित हैं और बौद्ध धर्म के क्षेत्र में शोधकर्ता हैं वे गाँव, कस्बों, शहरों, महानगरों और विश्वविद्यालयों में धम्म का प्रचार बखूबी कर रही हैं। दलितों, आदिवासियों, जेलों में बंद लोगों, छात्रों, पुलिस, मजदूरों से लेकर सशस्त्र बलों के अधिकारी वर्गों को बुद्ध का नैतिक मार्ग सिखाने के लिए कार्यशालाओं और शिविरों के माध्यम से सैद्धांतिक और व्यावहारिक प्रशिक्षण देती हैं। इस तरह भारत के सभी कोनों में मानवता के इस संदेश का प्रचार करके पाली पाठ को दैनिक उपयोग में लाने  और नियमित रूप से उनका पालन करना आसान कराती हैं। क्योंकि बुद्ध की शिक्षायें छुपाने के लिए नहीं बल्कि उन्हें अपना कर जीवन को उन्नत और सुखद बनाने के लिए हैं।

एक बार फिर बुद्ध और बाबासाहेब के आदर्श विचारों के साथ महिलाएं इस क्रांति में शामिल हुई हैं। एक बार फिर महिलाओं ने बुद्ध के कार्यकर्ता/ शिक्षकों/प्रचारकों के रूप में अपनी योग्यता और उनकी भूमिका को महसूस किया है और इसलिए मुझे लगता है कि आज ऐसी अधिक से अधिक योग्य भिक्खुनियों और महिला आचार्यों की आवश्यकता है। मानव जाति के उज्जल भविष्य के लिए कड़ी मेहनत करने वाले, प्रेरणादायक भिक्षुणी संघ के समावेश से थेरी गाथा का एक नया संस्करण जोड़ने की आवश्यकता है, यही बोधिसत्व बाबासाहब अंबेडकर के नवयान की उपलब्धि बन सकती है।

संघ के बुद्धकालीन इतिहास पर नजर डालें तो पहली बार यशोधरा के साथ बुद्ध की मौसी/माता रानी महाप्रजापति के साथ 500 महिलाओं का मुंडा हुआ सर और चीवर में लिपटी भिक्खुनियों के प्रवेश देखा जा सकता है। उन्होंने बुद्ध के संघ में धम्म के शिक्षार्थियों और प्रचारकों के रूप में महिला प्रतिनिधित्व की नींव रखी।  उन्होंने स्वयं पुरुषों के समान वस्त्र पहनने का चुनाव किया और यह सोचे बिना कि बुद्ध उन्हें ऐसा नहीं करने के लिए कहेंगे या नहीं, संघ में पुरुषों की नकल करने या उनका अनुसरण करने के लिए नहीं कहेंगे, उन्होंने स्वयं अपने सिर मुंडवाने का विकल्प चुना।  बुद्ध ने महिलाओं के सिर मुंडवाने पर कोई आपत्ति नहीं की (क्योंकि बालों को महिलाओं का सबसे महत्वपूर्ण गहना और उनकी सुंदरता माना जाता है) उन्होंने उन्हें बाल उगाने या कुछ अन्य शैली के वस्त्र पहनने के लिए नहीं कहा। तो यहां के भिक्षुणी संघ को तब अपनी पहचान और सम्मान मिला।

हमारे पास 'थेरी गाथाओं' में वर्णित भिक्खुनियों की कई कहानियां हैं, लेकिन सवाल यह है कि महाप्रजापति या यशोधरा या उन 500 भिक्खुनियों की कहानियां क्यों नहीं बताई जाती हैं?

डा अम्बेडकर द्वारा लिखित "भगवान बुद्ध उनका धम्म’ ग्रंथ की विषय- सूची

प्रथम काण्ड : सिद्धार्थ गौतम–बोधिसत्व किस प्रकार बुद्ध बने

चतुर्थ काण्ड: धर्म (मज़हब) और धम्म

·         भाग I - जन्म से प्रव्रज्या (गृहत्याग)

·         भाग I - मजहब और धम्म

·         भाग II - सदा के लिए अभिनिष्क्रमण

·         भाग II - किस प्रकार शाब्दिक समानता तात्विक भेद को छिपा सकती है

·         भाग III - नये प्रकार की खोज में

·         भाग III - बौद्ध जीवन का मार्ग

·         भाग IV - ज्ञान-प्राप्ति और नए मार्ग का दर्शन

·         भाग IV - बुद्ध के उपदेश दुनिया को बदल सकते है

·         भाग V - बुद्ध और उनके पूर्वज

पंचम काण्ड: संघ

·         भाग VI - बुद्ध तथा उनके समकालीन

·        भाग I - संघ

·         भाग VII - समानता तथा विषमता

     ·   ·         भाग II - भिक्खु: भगवान बुद्ध की कल्पना

द्वितीय काण्ड: धम्म दीक्षाओं का आन्दोलन

·         भाग III - भिक्खु के कर्तव्य

·         भाग I - बुद्ध और उनका विषाद योग

·         भाग IV - भिक्खु और गृहस्थ समाज

·         भाग II - परिव्रजकों की दीक्षा

·         भाग V - गृहस्थ धर्मावलंबियों के लिए विनय (जीवन-नियम)

·         भाग III - कुलीनों तथा धार्मिकों की धम्म-दीक्षा

षष्ठ काण्ड: भगवान बुद्ध और उनके समकालीन

·         भाग IV - जन्म भूमि का आवाहन

·         भाग I - बुद्ध के समर्थक

·         भाग V - धम्म दीक्षा का पुनरारम्भ

·         भाग II - बुद्ध के विरोधी

·         भाग VI - निम्नस्तर के लोगों की धम्म दीक्षा

·         भाग III - उनके सिद्धांतों (धम्म) के आलोचक

·         भाग VII - महिलाओं की धम्म दीक्षा

·         भाग IV - समर्थक और प्रशंसक

·         भाग VIII - पतितों और अपराधियों की धम्म दीक्षा

सप्तम काण्ड: महान परिव्राजक की अन्तिम चारिका

तृतीय काण्ड: बुद्ध ने क्या सिखाया

·         भाग I- निकटस्थ जनों से भेट

·         भाग I - धम्म में भगवान बुद्ध की अपनी जगह

·         भाग II - वैशाली से विदाई

·         भाग II - बुद्ध के धम्म के बारें में विभिन्न विचार

·         भाग III - महा-परिनिर्वाण

·         भाग III - धम्म क्या है ?

अष्टम काण्ड: महामानव सिद्धार्थ गौतम

·         भाग IV - अधम्म क्या है ?

·         भाग I - उनका व्यक्तित्व

·         भाग V - सद्धम्म क्या है ?

·         भाग II - उनकी मानवता

 नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स

·         भाग III - उन्हें क्या नापसंद था और क्या पसंद ?

समाप्ति

 

सम्भावना

अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ी जातियों की जनसंख्या परिशिष्ट 1 में दी गई है, उसका अध्ययन करने पर ऐसा लगता है की निकट भविष्य में धीरे धीरे सभी बहुजन जातियां अपने मूल बौद्ध धर्म की ओर लौट सकती हैं। इस लिए धर्म के प्रचार की बहुत जरुरत है। इसके लिए भिक्षुणी संघ बहुत कारगर बन सकता है। तथा इस बार 2021 की जनगणना के समय धर्म के कॉलम में बौद्ध लिखने से बौद्ध जनसंख्या में वृद्धि होने की सम्भावना है।

 

परिशिष्ट 1: भारत के प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेशों में अनुसूचित जातियों, अनु जनजातियों एवं अन्य पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या और उनका प्रतिशत - सेंसस 2011

 

S.No State/UT

Total

Population

SC

Population

% of SC

Population

ST

Population

% of ST

Population

% of OBC

Population

% of OBC

Population

1 Andhra Pradesh

84580777

13878078

16.4

5918073

7.0

42628712

50.4

2 Arunachal Pradesh

1383727

0

0.0

951821

68.8

38744

2.8

3 Assam

31205576

2231321

7.2

3884371

12.5

7895011

25.3

4 Bihar

104099452

16567325

15.9

1336573

1.3

65166257

62.6

5 Chhattisgarh

25545198

3274269

12.8

7822902

30.6

11623065

45.5

6 Goa

1458545

25449

1.7

149275

10.2

261080

17.9

7 Gujarat

60439692

4074447

6.7

8917174

14.8

24296756

40.2

8 Haryana

25351462

5113615

20.2

0

0.0

7174464

28.3

9 Himachal Pradesh

6864602

1729252

25.2

392126

5.7

1173847

17.1

10 Jammu & Kashmir

12541302

924991

7.4

1493299

11.9

1429708

11.4

11 Jharkhand

32988134

3985644

12.1

8645042

26.2

15438447

46.8

12 Karnataka

61095297

10474992

17.2

4248987

7.0

33907890

55.5

13 Kerala

33406061

3039573

9.1

484839

1.5

21814158

65.3

14 Madhya Pradesh

72626809

11342320

15.6

15316784

21.1

30140126

41.5

15 Maharashtra

112374333

13275898

11.8

10510213

9.4

37982525

33.8

16 Manipur

2855794

97328

3.4

1167422

40.9

1505003

52.7

17 Meghalaya

2966889

17355

0.6

2555861

86.2

35603

1.2

18 Mizoram

1097206

1218

0.1

1036115

94.4

17555

1.6

19 Nagaland

1978502

0

0.0

1710973

86.5

3957

0.2

20 Odisha

41974218

7188463

17.1

9590756

22.9

13935440

33.2

21 Punjab

27743338

8860179

31.9

0

0.0

4466677

16.1

22 Rajasthan

68548437

12221593

17.8

9238534

13.5

32423411

47.3

23 Sikkim

610577

28275

4.6

206360

33.8

308952

50.6

24 Tamil Nadu

72147030

14438445

20.0

794697

1.1

54903890

76.1

25 Tripura

3673917

654918

17.8

1166813

31.8

602522

16.4

26 Uttar Pradesh

199812341

41357608

20.7

1134273

0.6

108897726

54.5

27 Uttarakhand

10086292

1892516

18.8

291903

2.9

1845791

18.3

28 West Bengal

91276115

21463270

23.5

5296953

5.8

7941022

8.7

29 A & N Islands

380581

0

0.0

28530

7.5

68885

18.1

30 Chandigarh

1055450

199086

18.9

0

0.0

234310

22.2

31 D & N Haveli

343709

6186

1.8

178564

52.0

14779

4.3

32 Daman & Diu

243247

6124

2.5

15363

6.3

92191

37.9

33 NCT of Delhi

16787941

2812309

16.8

0

0.0

3273648

19.5

34 Lakshadweep

64473

0

0.0

61120

94.8

451

0.7

35 Puducherry

1247953

196325

15.7

0

0.0

962172

77.1

INDIA

1210854977

201378372

16.6

104545716

8.6

532776190

44.0

Source for SC and ST: Census of India, 2011

Source for OBC :- NSSO Report No. 563: Employment and Unemployment Situation among Social Groups, 2011-12