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कौन सुने देवदासियों की पीड़ा - सुभाषिनी सहगल अली

हजारों महिलाओं ने मिलकर मनाई डॉ बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती

इस साल कर्नाटक के होस्पेट शहर में डॉ बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती हजारों महिलाओं ने मिलकर मनाई। होस्पोट बेल्लारी जिले में है। वही बेल्लारी जिला, जिसके पत्थरों ने कुछ लोगों को खरबपति बना दिया है। वे गैरकानूनी तरीके से खनन कर ग्रेनाइट पत्थर निकालते हैं और उसका व्यापार करते हैं। इन्हीं पहाड़ों के पत्थर से इस इलाके में विजयनगर राज्य की राजधानी हम्पी के आसमान छूते मंदिरों को डेढ़ हजार साल पहले बनाया गया था। ये मंदिर विजयनगर राज्य की शान थे और इन्ही मंदिरों के आकर्षण को बढ़ाने के लिए देवदासियों को तैयार किया गया था। हमारे देश की हर प्रथा या यों कहिए कि कुप्रथा को मान्यता देने के लिए किस्से बनाए जाते हैं। इनमें अपराध कोई करता है और सजा किसी को मिलती है। अहिल्या का किस्सा भी इस श्रेणी में आता है और येल्लाम्मा का भी। किस्सा यह है कि एक बड़े तपस्वी ब्राह्मण थे, जिन्होंने तमाम संबंधों से खुद को अलग कर अपना पूरा ध्यान तप पर केंद्रित कर दिया था। उनकी आज्ञाकारी पत्नी थी, जो अपने त्यागे जाने के बाद भी अपने पति की सेवा में लगी रही। वह सुबह नदी से जल निकालकर पति को पूजा-अर्चना के लिए देती थी। एक दिन उन्हें पानी लाने में कुछ देर हो गई, तो उनके पति को उन पर शक होने लगा। जब वह पानी लेकर आई, तो उन्हें श्राप दे दिया गया। वह घर से दूर रहने के लिए मजबूर हो गई। उनकी ‘गलती’ की, जो केवल उनके पति के दिमाग का फितूर ही था, सजा केवल उनको नहीं, बल्कि करोड़ों गरीब दलित और आदिवासी परिवारों की बच्चियों को भी भुगतनी पड़ी है। वह तो येल्लाम्मा देवी बन गईं और ये बच्चियां उनको समर्पित देवदासी बना दी गईं।

कर्नाटक में लाखो देवदासी परिवार हैं। अब इन परिवारों की लड़कियों को मंदिरों में तो नहीं भेजा जाता, पर उनको ‘देवी’ को समर्पित कर वेश्या बनने के लिए मजबूर किया जाता है। मजबूर करने वाले इन बच्चियों के मां-बाप ही हैं। माताएं इसलिए कि वे खुद भी देवदासी हैं और पिता इसलिए कि उन्होंने उनकी माताओं से विवाह नहीं किया है।

कर्नाटक में कुछ हिम्मती देवदासी महिलाओं ने माकपा के सहयोग से देवदासी महिलाओं की यूनियन बनाई है, जिसके 15,000 से अधिक सदस्य हैं। यूनियन के संघर्षों का ही नतीजा है कि इनके साथ अन्य देवदासी महिलाओं को, जो वेश्या का पेशा छोड़ देती हैं, हर महीने सरकार से पेंशन मिलती है। पर इनसे शादी करने के लिए कोई तैयार नहीं होता। इनके बच्चों को हर जगह ‘मां का नाम ही भरना पड़ता है और अपमानित होना पड़ता है। यूनियन की सदस्य हजारों देवदासी महिलाओं ने विगत 15 अप्रैल को बाबा साहेब को याद करने के लिए बहुत बड़ी सभा का आयोजन किया था। अंबेडकर जयंती पर अब उन सरकारी ताकतों का कब्जा हो गया है, जो बाबा साहेब के विचारों से सहमत नहीं हैं। अगर होते, तो क्या कर्नाटक में लाखों की संख्या में देवदासियां होतीं?

हमारे प्रधानमंत्री मुस्लिम महिलाओं की दुर्दशा को लेकर बहुत चिंतित हैं। उनके साथी कह रहे हैं कि अगर इन महिलाओं को न्याय नही मिलता, तो उन्हें हिंदू बन जाना चाहिए। देवदासी महिलाओं को अच्छी तरह पता है कि उनको न्याय धर्म और धार्मिक समुदायों के बीच चक्कर लगाने से नहीं, बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान का सहारा लेकर, अन्याय और असमानता के खिलाफ लड़ने से ही मिल सकता है। -लेखिका माकपा की पोलित ब्यूरो सदस्य हैं।

'हरिजन' शब्द भी 'देवदासी' का ही पर्यायवाची

यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि 'हरिजन' शब्द भी 'देवदासी' का ही पर्यायवाची समझा जाता है, जिसका कभी बाबा साहब अम्बेडकर ने स्तेमाल नहीं किया। सबसे पहले गाँधी जी ने यह सम्बोधन हरिजन पत्रिका के माध्यम से अनुसूचित जातियों या अछूतों के लिए दिया तो डा. अम्बेडकर और उनके लोग आग बबूला हो गए। बाद में हद तो तब हुई जब कांग्रेस की सरकारों ने हरिजन नाम से एक 'हरिजन कल्याण मंत्रालय' बना दिया। आपको पता होगा 1980 से मान्यवर कांशी राम जी और सुश्री मायावती जी ने अपने अनुयायियों के साथ बामसेफ और डीएस4 के बैनर के नीचे इस शब्द के खिलाप बड़ा आंदोलन चलाया। तभी से दलित वोटर धीरे-धीरे कांग्रेस से हटना शुरू हो गए और बहुजन समाज पार्टी जब 1984 में बन गयी तो उसके साथ सम्मान और स्वाभिमान की तलाश में एकजुट होने लगे। 1990 में जब श्री चंद्रशेखर की सरकार थी उस समय सुश्री मायावती ने कहा था 'दलित' यदि 'हरि' अर्थात भगवान की औलाद हैं तो गाँधी जी क्या शैतान की औलाद हैं। उसी समय राजघाट पर स्थित गाँधी जी की समाधि पर बसपा की बड़ी रैली के समय कुछ अराजक तत्वों ने बसपा को बदनाम करने की नियत से तोड़फोड़ की और उनकी मशाल को भी क्षति पहुंचाई थी। सभी समाचार पत्रों में प्रथम पृष्ठ पर छपा 'बसपा के कार्य कर्ताओं द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की समाधि पर नंग नाच' जिसकी कांशी राम जी ने भी भर्तसना करते हुए कहा था कि यह काम बसपा के कार्यकर्ताओं ने नहीं बल्कि तथाकथित समाज विरोधी लोगों ने किया है उनको सजा मिलनी चाहिए तथा बसपा कार्यकर्ताओं को छोड़ देना चहिये। 

इन तमाम घटनाओं को मद्देनज़र रखते हुए सरकार ने 'हरिजन' शब्द को असंसदीय करार दे दिया तथा मंत्रालय का नाम बदल कर "समाज कल्याण" कर दिया। आज दलित शब्द के खिलाफ भी आबाज उठने लगी है। बड़े शर्म की बात है देवदासियों का कल्याण आज भी नहीं हो सका है। क्या वर्तमान मोदी सरकार इस दिशा में ध्यान देगी ?